जानिये इंसुलिन का इतिहास आखिर कैसे हुआ आविष्कार

जानिये इंसुलिन का इतिहास आखिर कैसे हुआ आविष्कार

जानिये इंसुलिन का इतिहास आखिर कैसे हुआ आविष्कार

हम इंसुलिन की बात कर रहे हैं जिसकी centenary anniversary इस वर्ष (2021) मनाई जा रही है। आज से सौ वर्ष पहले सन् 1921 में इंसुलिन को कनाडा के टोरंटो विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं फ्रेडरिक ग्रांट बैंटिंग और चाल्र्स हर्बर्ट बेस्ट ने जॉन मैक्लिओड के निर्देशन में इसका सफलतापूर्वक प्रयोग किया था।

जानिये इंसुलिन का इतिहास

इस आविष्कार को सर्वप्रथम एक 14 वर्ष के डायबिटीज रोगी लियोनार्ड थॉम्पसन पर सन् 1922 में आजमाया गया। थॉम्पसन टाइप वन डायबिटीज रोग से पीड़ित थे जो अक्सर बच्चों में होती है और इसमें रोगी के अग्नाशय में इंसुलिन का निर्माण नहीं होता। इंसुलिन न बनाने के कारण थॉम्पसन का ब्लड शुगर हमेश बढ़ा रहता था, लेकिन बैंटिंग और बेस्ट द्वारा तैयार किए गए इंसुलिन के इंजेक्शन से उनका शुगर नियंत्रित हो गया। इस प्रकार दुनिया को डायबिटीज के उपचार के लिए नई दवा मिली।

इंसुलिन के आविष्कार से पहले विज्ञानियों को यह पता था कि

इंसुलिन के आविष्कार से पहले विज्ञानियों को यह पता था कि, अग्नाशय किसी न किसी तरह डायबिटीज के लिए जिम्मेदार है। सन् 1889 में Oskar Minkowski और Oseph Von Mering ने पता लगा लिया था कि, अग्नाशय को नष्ट करने पर कुत्तों में डायबिटीज हो जाता है। अपने प्रयोगों से उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि, अग्नाशय में कोई ऐसा तत्व मौजूद है जिसे यदि निकाल कर ऐसे जानवर को दिया जाए जिसे डायबिटीज है तो उसे डायबिटीज के दुष्प्रभावों से बचाया जा सकता है। अब तक यह तो साफ हो चुका था कि, अग्नाशय में स्थित कोई कोशिका समूह ही शरीर में बढ़े शुगर को नियंत्रित करती है, लेकिन इसका प्रमाण उपलब्ध नहीं था। वर्ष 1893 में पता चला कि, लैंगरहैंस की कोशिकाएं कुछ ऐसी चीजें स्रावित करती हैं जो शरीर में शर्करा के मेटाबोलिज्म को नियंत्रित करता है।

अब मिन्कोवस्की और मेरिंग के कार्य को आगे बढ़ाया फ्रेडरिक बैंटिंग ने। बैंटिंग टोरंटो विश्वविद्यालय से चिकित्सा विज्ञान की डिग्री प्राप्त कर एक सर्जन के पद पर काम करते थे। एक मेडिकल स्कूल में अपने एक व्याख्यान की तैयारी के संदर्भ में अक्टूबर सन् 1920 में बैंटिंग के हाथ मोसेस बरों का एक आर्टिकल हाथ लगा। इसमें लिखा था कि, अगर अग्नाशय की एसिनर ग्रंथियों से पाचक रस लाने वाली नलिकाओं को बांधकर बंद कर दिया जाए, तो कुछ दिनों में एसिनर कोशिकाएं मर जाती हैं और पाचक रस जैसे कि, ट्रिप्सिन आदि का स्त्राव बंद हो जाता है।

बैंटिंग के मन में एक विचार आया जो इंसुलिन के परिष्करण में बहुत सहायक सिद्ध हुआ। उनका विश्वास था कि, अग्नाशय में बनने वाले एंजाइम या पाचक रस इंसुलिन को परिष्करण प्रक्रिया के दौरान नष्ट कर देते हैं। इस विचार से उन्होंने टोरंटो विश्वविद्यालय के John Macleod को मिले, जो काबरेहाइड्रेट मेटाबोलिज्म पर खोज करते थे। इस प्रकार John Macleod के निर्देशन में बैंटिंग और बैस्ट ने सन् 1921 में इस प्रयोग का कार्य शुरू किया।

कुत्तों पर भी किया था प्रयोग

उन शोधकर्ताओं ने कुत्तों में अग्नाशय की नलिकाओं को बांध दिया और सात हफ्ते के बाद देखा, तो अग्नाशय का आकार घट कर एक तिहाई हो गया था। उन्होंने उन अग्नाशयों से निकाले गए रस को दूसरे कुत्तों को इंजेक्शन से दिया, जिन्हें अग्नाशय निकाल लिए जाने से डायबिटीज हो गया था। इससे डायबिटीज पीड़ित प्रयोग में शामिल कुत्तों में शुगर का स्तर घट कर सामान्य हो गया। इतना ही नहीं, कुत्तों में डायबिटीज के लक्षणों में बहुत सुधार हुआ, उनकी जिजीविषा (life expectancy) लौट आई, उनके घाव शीघ्र भर गए और वे अन्य डायबिटीज पीड़ित कुत्तों से ज्यादा दिनों तक जीवित रहे थे।

इस प्रकार अनगिनत विज्ञानियों के इतने वर्षो के सतत प्रयास को अंतत: सफलता मिली और डायबिटीज को मात देने के लिए किए गए इस आविष्कार ने डायबिटीज के मरीजों में सामान्य जीवन जीने का मौका दिया है। इस आविष्कार के लिए बैंटिंग और मैक्लिओड को सन् 1923 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

इंसुलिन के आविष्कार के बाद से अब तक

इंसुलिन के आविष्कार के बाद से अब तक इस दिशा में काफी प्रगति हो चुकी है। पिछली शताब्दी के आठवें दशक तक आते आते इंसुलिन को बायोटेक्नोलॉजी के माध्यम से रेकॉम्बीनैंट डीएनए तकनीक से बनाया जाने लगा जिसे ‘ह्यूमन इंसुलिन’ कहा गया। यह इंसुलिन वैसा ही होता है जैसा हमारा शरीर बनाता है और यह अत्यंत शुद्ध होता है। इस पद्धति से बहुत अधिक मात्र में इंसुलिन का निर्माण होने से करोड़ों रोगियों को इंसुलिन आसानी से प्राप्त हो पाता है। इंसुलिन के आविष्कार के सौ वर्षो के बाद भी डायबिटीज रोगियों की बढ़ती संख्या चिंता का विषय बनी हुई है, जिसे बढ़ाने में मोटापा, खानपान की पाश्चात्य पद्धति, आरामतलब जीवनशैली, मशीनीकरण और कई अन्य कारण जिम्मेदार हैं। इंसुलिन डायबिटीज को नियंत्रित तो कर सकता है, लेकिन डायबिटीज हो ही नहीं, इसके लिए हमें निरंतर अध्ययन और प्रयास करने से और इंसुलिन जैसे ही कई नए आविष्कारों की आवश्यकता है।

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