जेस्टेशनल डायबिटीज क्या है? पूरी जानकारी आसान शब्दों में

जेस्टेशनल डायबिटीज क्या है?  

गर्भावधि मधुमेह यानी जेस्टेशनल डायबिटीज जो एक प्रकार का डायबिटीज ही है जिसमें गर्भावस्था के दौरान बहुत सी महिलाएं डायबिटीज से प्रभावित होती है। डायबिटीज एक ऐसी स्थिति है जहां खून में ग्लूकोज की मात्रा बहुत अधिक होती है। साथ ही आमतौर पर रक्त में ग्लूकोज की मात्रा इंसुलिन नाम के एक हार्मोन द्वारा नियंत्रित होती है। गर्भावस्था के समय कुछ महिलाओं के रक्त में ग्लूकोज का लेवल सामान्य से अधिक हो जाता है और उनका शरीर उन सभी कोशिकाओं में रक्त पहुंचाने के लिए पर्याप्त इंसुलिन का उत्पादन नहीं कर पाती है। इसका सीधा अर्थ है कि रक्त में ग्लूकोज का लेवल बढ़ जाता है।

जेस्टेशनल डायबिटीज कब होता है? 

गर्भावस्था के दौरान हमारी बॉडी में तमाम तरह के बदलाव आते हैं और कई बार ये कुछ बदलाव बीमारियों को जन्म देते हैं, उन्हीं बीमारियों में से एक है जेस्टेशनल डायबिटीज। इस बीमारी में गर्भवती महिलाओं को ब्लड शुगर लेवल बढ़ जाता है। वहीं एक शोध के मुताबिक, प्रेग्नेंसी के 24 से 28 वें हफ्ते के बीच जेस्टेस्शनल डायबिटीज देखने को मिलती है, लेकिन इस बीमारी में महिलाओं को घबराने की जरूरत नहीं, क्योंकि यह डायबिटीज बच्चे के जन्म के बाद अपने आप ही खत्म हो जाती है।

जेस्टेशनल डायबिटीज इन प्रेगनेंसी 

मां और बच्चे दोनों पर ही जेस्टेशनल डायबिटीज का बुरा असर पड़ता है। इसकी वजह से ब्लड शुगर और प्रीक्लैंप्सिया का खतरा बढ़ सकता है। तब यह आगे चलकर महिलाओं को टाइप -2 डायबिटीज का भी खतरा रहता है और गर्भस्थ शिशु का वजन बढ़ सकता है। गर्भावधि डायबिटीज में प्रीमैच्योर बर्थ यानी नौ महीने से पहले डिलीवरी होना और जन्म के साथ शिशु का ब्लड शुगर लो रहने का खतरा रहता है।

जेस्टेशनल डायबिटीज के लक्षण  

गर्भावस्था में जेस्टेशनल डायबिटीज होने आम बात है, लेकिन यदि आप इस समस्या को नहीं पहचान पा रहे हैं तो उससे आने वासे बच्चे पर भी बहुत भुरा प्रभाव पड़ता है। इसलिए यदि आपके नीचे दिए गए लक्षणों में से कुछ भी महसूस होता है तब तुरंत डॉकटर से सलाह ले, क्योंकि आपकी एक लापरवाही आपके साथ-साथ नवजात के भी खतरे में डाल सकते है।

  • वैसे तो गर्भवती  महिलाओं में थकान का होना एक आम बात है, लेकिन ये थकान अधिक बढ़ जाए और कमजोरी में बदलने लगे तो समझ लिजिए की ये जेस्टेशनल डायबिटीज के लक्षण हो सकते हैं।
  • जो महिलाएं जेस्टेशनल डायबिटीज का शिकार होती हैं उनकी आंखों से धुंधला दिखाई देना शुरू हो जाता है।
  • बार-बार प्यास लगना और जरूरत से ज्यादा भूख लगना भी जेस्टेशनल डायबिटीज के संकेत हैं। यदि आपको यह लक्षण दिखाई दे तो तुरंत अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
  • यूरिन इंफेक्शन होने पर अधिक यूरिन पास करते हैं, और कई बार गर्भावस्था के दौरान भी ये स्थिति पेदा होती है। यदि ये लंबे समय तक बनी रहे तो यह जेस्टेशनल डायबिटीज के लक्षण होते हैं।
  • जो गर्भवती महिला जेस्टेशनल डायबिटीज  का शिकार होती हैं वे महिलाएं सोते समय खूब खर्रांटे लेती है।

जेस्टेशनल डायबिटीज का इलाज 

आमतौर पर गर्भावस्था का आधा समय गुजर जाने के बाद यानी की 24 से 28 हफ्तों के बाद जेस्टेशनल डायबिटीज का खतरा पैदा होता है। वैसे तो बच्चे के जन्म के बाद ये समस्या खुद ही खत्म हो जाती है, लेकिन कई बार इलाज करवाने की जरूरत पड़ ही जाती है।

  1. जिस गर्भवती महिला को जेस्टेशनल डायबिटीज की समस्या है उसे अपने ब्लड शुगर लेवल का ध्यान रखने की जरूरत होती है यानी की रक्त शर्करा का स्तर कंट्रोल रखना अवश्यक होता है जिससे ये समस्या अधिक ना बढ़े।
  2. आपको हेल्दी खाने और रोजाना व्यायाम करने की भी सलाह दी जाती है जिससे ये खतरा हो ही ना और यदि हो भी जाएं तो समय रहते इसका इलाज जरूर करवाएं।
  3. कई बार जब ये स्थिति और खराब हो जाती है और डायबिटीज बढ़ जाता है तो इंसुलिन इंजेक्शन भी लेना पड़ सकता है।
  4. गर्भावस्था में डायबिटीज का सबसे अच्छा इलाज यहीं है कि आप अपनी लाइफस्टाइल और स्वस्थ खानपान सही रखें। साथ ही उस समय आपको अपना खास ध्यान रखने की भी खास जरूरत होती है। इसके अलावा उचित और हेल्दी डाइट ही आपको जेस्टेशनल डायबिटी से बचा सकती है।

जेस्टेशनल डायबिटीज के कारण 

जेस्टेशनल डायबिटीज कई परिवर्तन जैसे हार्मोनल या कोई ऐसा परिवर्तन जो डायबिटीज के समय शरीर में होने के कारण महिलाओं को इंसुलिन के प्रति नुकसान पहुंचाते हैं। इंसुलिन पैंक्रियाज में विशेष कोशिकाओं द्वारा निर्मित हार्मोन है जो शरीर में ग्लूकोज को अच्छे चयापचय करने में मदद करता है जो बाद में ऊर्जा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। जब इंसुलिन का लेवल कम होता है या फिर बॉडी सही तरीके से इंसुलिन का इस्तेमाल नहीं कर पाती है तब ब्लड में ग्लूकोज का लेवल बढ़ जाता है।

कुछ मात्रा में इंसुलिन प्रतिरोध और बिगड़े हुए ग्लूकोज टोलरेंस देर से धारण की हुई गर्भावस्था में होना सामान्य है। यह कुछ महिलाओं में गर्भावधि डायबिटीज से पीड़ित होने के लिए पर्याप्त माना जाता है। जेस्टेशनल डायबिटीज होने के बहुत से कारण हो सकते हैं जैसे –

  • मोटापा।
  • पहले से ही शुगर से पीड़ित होना।
  • माता-पिता या भाई के टाइप – 2 डायबिटीज से पीड़ित होना।
  • पिछली गर्भावस्था में जेस्टेशनल डायबिटीज से पीड़ित होना।
  • पिछली गर्भावस्था में अधिक भार के शिशु का जन्म होना यानी 4 किग्रा सेअधिक होना।
  • पोलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम से ग्रस्त होना।

जेस्टेशनल डायबिटीज टेस्ट 

गर्भावस्था के समय में होने वाले परिवर्तनों में महिला का वजन बढ़ने लगता है जिससे इंसुलिन के फंक्शन भी ब्लॉक हो जाते हैं। इन सभी कारणों से रक्त शर्करा का स्तर बढ़ जाता है। इससे गर्भवती महिलाओं को जेस्टेशनल डायबिटीज हो जाता है, जो मां और बच्चें दोनों को नुकसान पहुंचा सकता है और ये बेहद खतरनाक होता है, इसलिए गर्भावस्था के समय ग्लूकेज स्क्रीनिंग टेस्ट करवाना बेहद जरूरी है। ग्लूकोज स्क्रीनिंग टेस्ट या ग्लूकोज चैलेंट टेस्ट गर्भावस्था में 24 से लेकर 28 हफ्ते के बाद करवाया जाता है। यदि किसी महिला में जेस्टेशनल डायबिटीज के लक्षण दिखाई देते हैं तो ये टेस्ट पहले भी करवाया जा सकता है।

ग्लूकोज स्क्रीनिंग टेस्ट कैसे किया जाता है?

यह जेस्टेशनल डायबिटीज से जुड़ा पहला टेस्ट है। यदि यह पॉजिटीव आए तभी डॉक्टर दूसरे टेस्ट करने की भी सलाह देते हैं। इस टेस्ट के लिए आपको किसी भी तरह से भूखा रहने की जरूरत नहीं पड़ती है। आप अपना सामान्य भोजन ले सकते हैं। इस टेस्ट सेंटर में आपको 50 ग्राम ग्लूकोज लिक्किड पीने के लिए दिया जाता है और कुछ घंटे के बाद डॉक्टर आपका ब्लड सैंपल लेते हैं और शुगर लेवल की जांच करते हैं। साथ ही यदि शुगर का स्तर 200 mg/dl ले अधिक आता है तो इसका अर्थ है कि आपको टाइप-2 डायबिटीज है और अगर शुगर का स्तर 140 mg/dl से अधिक आता है तो डॉक्टर आपको ओरल ग्लूकोज टोलरेंस टेस्ट करवाने के लिए कहते हैं।

ओरल ग्लूकोज टोलरेंस टेस्ट या टू स्टेप टेस्ट क्या है?

इन जांच में आपके रक्त शर्करा की जांच खाली पेट और भरा पेट दोनों तरह से की जाती है। इससे यह सामने आता है कि आपका शरीर ब्लड शुगर के प्रति किस तरह रिस्पॉन्स कर रहा है। जब कोई गर्भवती महिला ग्लूकोज स्क्रीनिंग टेस्ट के बाद OGTT की जाती है। तब इसे टू-स्टेप जांच कहा जाता है। बता दें कि, OGTT के लिए टेस्ट से पहले कम से कम 8 से 14 घंटे तक भूखा रहना पड़ता है। इस समय आप सिर्फ पानी ले सकती है फिर डॉक्टर आपका टेस्ट सैंपल लेता है।

साथ ही इसके बाद इस टेस्ट में आपको 100 ग्राम ग्लूकोज लिक्किड पीना पड़ता है, फिर डॉक्टर फास्टिंग शुगर टेस्ट के बाद नॉन फास्टिंग शुगर सैंपल लेते हैं। इस सैंपल को हर 3 घंटे में लिया जाता है। अगर इन सभी टेस्ट के बाद आपका शुगर लेवल बेहद हाई आता है, तो इस सीधा अर्थ है कि आपको जेस्टेशनल डायबिटीज है।

OGTT में शुगर लेवल 
  • फास्टिंग – 95 mg/dl (5.3mmol/L)
  • 1 घंटे बाद – 180 mg/dl (10.0mmol/L)
  • 2 घंटे बाद – 155 mg/dl (8.6mmol/L)
  • 3 घंटे बाद – 140 mg/dl (7.8mmol/L)

वन स्टेप टेस्ट – इस टेस्ट में डॉक्टर आपका फास्टिंग ब्लड शुगर लेवल देखा जाता है। इसके बाद आपको 75 ग्राम ग्लूकोज दिया जाता है, फिर डॉक्टर आपका नॉन फास्टिंग शुगर स्तर सैंपल लेते हैं जो करीब 2 घंटे बाद हर 60 मिनट में लिया जाता है। इसके लिए पहले आपको 8 से 14 घंटे तक भूखा रहना पड़ता है।

खाने के बाद शुगर लेवल 

  • फास्टिंग – 92 mg/dl (5.1mmol/L)
  • 1 घंटे बाद – 180 mg/dl (10.0mmol/L)
  • 2 घंटे बाद – 153 mg/dl (8.5mmol/L)

इससे अधिक वैल्यू आने का अर्थ है कि आपको जेस्टेशनल डायबिटीज की समस्या शुरू हो चुकी है।

जेस्टेशनल डायबिटीज के दौरान इन्सुलिन 

जैसा कि डायबिटीज का इलाज सिर्फ और सिर्फ इंसुलिन है या अपनी लाइफस्टाइ, डाइट में बदलाव करके ही जिंदगी जी जा सकती है। लेकिन अगर जेस्टेशनल डायबिटीज का इलाज न किया जाए या इसे नियंत्रण न किया जाए तो इसकी वजह से बच्चे को नुकसान पहुंच सकता है। जेस्टेशनल डायबिटीज में इंसुलिन बनाने के लिए पैंक्रियाज को अधिक काम करना पड़ता है, लेकिन इंसुलिन ब्लड ग्लूकोज के स्तर को कम नहीं करता है और प्लेसेंटा, ग्लूकोज और अन्य पोषक तत्वों तक नहीं पहुंचता है, इसलिए जब अतिरिक्त ब्लड ग्लूकोज प्लेसेंटा के जरिए शिशु तक पहुंचता है तो बच्चे का ब्लड ग्लूकोज लेवल बढ़ जाता है। इससे शिशु के पैंक्रियाज इस बढ़े हुए ब्लड ग्लूकोज को निकालने के लिए अधिक इंसुलिन बनाने लगता है, क्योंकि बच्चे को अपनी जरूरत से अधिक एनर्जी मिल रही होती है, इसलिए वे इस अतिरिक्त उर्जा को फैट के रूप में स्टोर करने लगता है।

बता दें कि, इसकी वजह से बच्चों में मैक्रोसोमिया हो सकता है। इन बच्चों के जन्म के समय कंधों में चोट आ सकती है। वहीं पैंक्रियाज द्वारा अधिक इंसुलिन बनने की वजह से बच्चे का जन्म के समय ब्लड ग्लूकोज लेवल बहुत गिर जाता है और उन्हें सांस लेने में दिक्कत हो सकती है।

जेस्टेशनल डायबिटीज डाइट प्लान 
  1. जेस्टेशनल डायबिटीज में कौन से फल खाने चाहिए – इस समय कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स और अधिक फाइबर युक्त फलों का इस्तेमाल करें। स्नेक्स के रूप में फलों का सेवन करना अधिक अच्छा होता है और अगर आप अपने मुख्य भोजन में फलों को शामिल करते हैं तो यह आपके ब्लड शुगर लेवल को बढ़ देंगे, इसलिए स्नेक्स में फलों को ही शामिल करें। ध्यान रखें की हमेशा ताजे फलों का प्रयोग करें, फलों के जूस को नहीं। आप इनमें सेब, नाशपाती, संतरा, खरबूजा, मौसम्बी आदि को अपने आहार में शामिल कर सकते हैं।
  2. जेस्टेशनल डायबिटीज में कौन-सी सब्जियां खानी चाहिए – सब्जियां फाइबर, पानी, आयरन, जिंक आदि का अच्छा स्त्रोत माना जाता है। हर आहार में किसी भी एक सब्जी का इस्तेमाल आपके ब्लड शुगर के लेवल को कंट्रोल कर सकता है। आप अपने आहार में सूप, स्टिर फ्राई सब्जियां, पकी हुई सब्जियों को शामिल कर सकते हैं। साथ ही स्टार्च युक्त सब्जियों में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा अधिक होती है जो कि आपके ब्लड शुगर के लेवल को बढ़ाता है, इसलिए अपने आहार में इनके इस्तेमाल से बचें। आप रोज के भोजन में पालक, मैथी, चौलाई, तोराई, लौकी, बैंगन, टमाटर, सहजन आदि को आसानी से शामिल कर सकते हैं।
  3. जेस्टेशनल डायबिटीज में आहार परहेज – कुछ खाद्य पदार्थ ऐसे होते हैं, जो आपके शरीर में रक्त शर्करा के लेवल को बढ़ाने में मदद करते हैं जैसे कि, अधिक, शुगर, अधिक वसा और प्रेजरवेटिव वाले आहार। इनका सेवन गर्भवती महिला और उसके शिशु दोनों के लिए हानिकारक होता है, इसलिए इनका परहेज करना अनिवार्य है जैसे –
  • आसानी से पचने वाले कार्बोहाइड्रेट – फलों के रस, आम, चीकू, लीची, आलू, गाजर, चुकंदर, सफेद चावल, मैदा, बेकरी प्रोडक्ट्स, चीनी, शहद, गुड़ आदि।
  • तेल खाद्य पदार्थ – समोसा, कचौड़ी, पकौड़ा, फ्रेंच फाई आदि।
  • प्रोसेस्ड फूड – जैम, जेली, चिप्स, नमकीन, बिस्कुट, ब्रेकफास्ट सीरियल आदि।
  • अजीनोमोटो युक्त खाद्य पदार्थ – चाइनीज फूड, रेडी टू ईट फूड आदि
  • जंक फूड – पिज्जा, बर्गर, फ्रेंच फाइज आदि।
जेस्टेशनल डायबिटीज Vs टाइप 1 डायबिटीज Vs टाइप 2 डायबिटीज 
अंतर का आधारटाइप 1टाइप 2जेस्टेशनल डायबिटीज
इंसुलिन की आवश्यकताइंसुलिन डोज की अनिर्वायजीवनशैली में बदलाव और आवश्यक पड़ने पर इंसुलिनगर्भवती महिला आवश्यकता अनुसार
लिंगकिसी को भी हो सकता हैकिसी को भी हो सकता हैगर्भवती महिलाएं
जोखिमअधिक खतराजीवनशैली में बदलाव के साथ कम खतरागर्भावस्था के समय शुरू हुई डायबिटीज प्रसव के बाद खत्म
आनुवंशिकी (Genetics)आनुवांशिक तौर पर होनाखराब जीवनशैली और गलत खान-पान की वजह
संबधित स्रोत

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